ओशो: “ शिक्षा और विद्रोह ” किताब से -
" क्या यह नहीं हो सकता कि गणित कोई इसलिए सीखे और सिखाया जाए कि गणित सीखना उसका आनन्द है? क्या यह नहीं हो सकता कि कोई काव्य इसलिए सीखे कि काव्य उसका आनन्द है? और रोज़ अपने को अतिक्रमण करने के लिए आगे बढ़ता चला जाए कि कल मैं जहाँ था, और कल के सूरज ने जहाँ मुझे छोडा था, आज का उगता सूरज मुझे वहाँ न पाए? मैं आगे निकल जाऊँ। अपने से ही रोज़-रोज़ स्वयं को अतिक्रमण और ट्रन्सेन्ड करता जाऊँ, क्या यह नहीं हो सकता है? क्या इस भाँति की गैर-प्रतिस्पर्धी शिक्षा नहीं हो सकती?......... "
क्या हो सकती है???
(July 16, 2008)
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