Saturday, February 21, 2009

उसके रास्ते की कीमत...... (Feb 11, 2009)

किसी की भी क्षमताओं, चाहे सामाजिक, चाहे व्यक्तिगत, चाहे व्यावसायिक, चाहे धार्मिक, या भावुक, का अनुमान लगाना संभव नहीं। फिर भी हम रोज़ लोगों को आँकते हैं।

एक '90 प्रतिशत' क्षमता वाला नौजवान, अपने अपनों के लिए जब '30 प्रतिशत' जीता है, तो उसके ख़ुद के और अपने करियर के फैसलों को 'compromise' (समझौता ) कह कर उसे गाली मत दो। जिनके लिए वो कुछ कर रहा है, उन्हें उसकी उड़ान की रुकावटें बता कर उसका दुश्मन मत बनाओ। "What will you achieve in your life?" का ताना मार कर उसकी ज़िन्दगी के fulfillment (पूरेपन) को अधूरा मत बना दो। उसके पास philosophical (दार्शनिक) उत्तर नहीं हैं तुम्हारे सवालों के, बस अपनों की खुशी है।
उसका आत्मविश्वास तुम अक्सर बढाते हो, अब कम मत करो। उसे तुम्हारे कहने का फर्क पड़ता है। तुम अकेले नहीं हो, तुम भीड़ हो, तुम समाज हो।
ऐसे पैमाने मत तय करो की अपनी खुशी के लिए कुछ करने पर वो व्यक्ति विद्रोही या ........ डरपोक कहलाये।

What has he achieved in his life? या What is the meaning of his life? शायद तुम नहीं जान पाओगे।
शायद उसमें चमक नहीं है। वो mediocre है। कोई मेडल कोई डिग्री कोई बड़े पद का ताज नहीं उसके पर!
तुम नहीं जान पाओगे।

दीमकों का भोजन बनती मेरी कॉलोनी की साफ़ सड़क के किनारे पड़ी उस दरख्त का महत्व तुम नहीं समझ पाओगे।
वो बहुत कीमती है।
भेड़ चराने वाली उन लड़कियों के लिए।
वो दरख्त उनके घर का चूल्हा जलाएगी। कितने अपने होंगे ये चरवाहे उस दरख्त के लिए। खुशी से जलेगी ये दरख्त उनके लिए।
बस ये कॉलोनी का चौकीदार उन लड़कियों को कॉलोनी में घुसने तो दे!

(Feb 11, 2009)

Wednesday, February 4, 2009

एक संत देखा आज (Oct 24, 2008)

संत कबीर की एक बात सुनी थी :
" कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये
ऎसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये "

कितना सूक्ष्म विचार है ये, कितना गहरा।

आज कॉलेज के cultural festival में शंकर - एहसान - लॉय आए थे गाने बजाने। खूब समा बांधा उन्होंने। भारत भर के कॉलेजों से आए हजारों बच्चे झूम रहे थे, नाच रहे थे। सब कितने खुश थे। एक घंटे के शो के बाद Rock-on fame फरहान अख्तर की surprise entry हुई। चारों ओर एक जादू सा फैलाने गया। फरहान अख्तर कुछ कहता, लोग खो जाते, एक मस्ती में, कुछ शायद समाधि में। लोग जितना झूम रहे थे, उस से ज्यादा झूमने लगे। जितने खुश थे, उस से ज्यादा खुश हो गए। हर चेहरा एक मुस्कान लिए, हर शरीर नाचने को बेताब।

पता नहीं फरहान अख्तर
ने कबीर की इस बात को सुना था या नहीं, लेकिन उसने इस बात को चरितार्थ कर के दिखाया आज। या शायद उस से ज्यादा कुछ किया। कुछ ऐसा किया की जीते जी ही सबको हंसाया, खुश किया।

संत फरहान??


(Oct 24, 2008)