Thursday, April 2, 2009

गन्दगी और Dettol (August 2007)


जब उस व्यस्त बाज़ार की गली के कोने पर पड़े कचरे के ढेर पर plastic की थैलियाँ चुनती एक फटेहाल औरत के दो साल के बच्चे को मैले कुचैले हाथों से शायद रोटी जैसी कोई चीज़ खाते हुए देखा, तो Dettol Everyday Protection का वो advertisement याद आया जिसमें किसी लकी सिंह को तीन साल तक 100% attendance के लिए ईनाम मिलता है।
Dettol इस्तेमाल करने वाले लोग लकी सिंह की तरह कम बीमार पड़ते हैं और रोज़ स्कूल जा पाते हैं, पर कचरा बीनने वाली के उस बच्चे को Dettol की ज़रूरत नहीं, क्योंकि कचरा और गन्दगी उसके जिंदा रहने का ज़रिया है और स्कूल वो कभी जा पायेगा नहीं।

Saturday, February 21, 2009

उसके रास्ते की कीमत...... (Feb 11, 2009)

किसी की भी क्षमताओं, चाहे सामाजिक, चाहे व्यक्तिगत, चाहे व्यावसायिक, चाहे धार्मिक, या भावुक, का अनुमान लगाना संभव नहीं। फिर भी हम रोज़ लोगों को आँकते हैं।

एक '90 प्रतिशत' क्षमता वाला नौजवान, अपने अपनों के लिए जब '30 प्रतिशत' जीता है, तो उसके ख़ुद के और अपने करियर के फैसलों को 'compromise' (समझौता ) कह कर उसे गाली मत दो। जिनके लिए वो कुछ कर रहा है, उन्हें उसकी उड़ान की रुकावटें बता कर उसका दुश्मन मत बनाओ। "What will you achieve in your life?" का ताना मार कर उसकी ज़िन्दगी के fulfillment (पूरेपन) को अधूरा मत बना दो। उसके पास philosophical (दार्शनिक) उत्तर नहीं हैं तुम्हारे सवालों के, बस अपनों की खुशी है।
उसका आत्मविश्वास तुम अक्सर बढाते हो, अब कम मत करो। उसे तुम्हारे कहने का फर्क पड़ता है। तुम अकेले नहीं हो, तुम भीड़ हो, तुम समाज हो।
ऐसे पैमाने मत तय करो की अपनी खुशी के लिए कुछ करने पर वो व्यक्ति विद्रोही या ........ डरपोक कहलाये।

What has he achieved in his life? या What is the meaning of his life? शायद तुम नहीं जान पाओगे।
शायद उसमें चमक नहीं है। वो mediocre है। कोई मेडल कोई डिग्री कोई बड़े पद का ताज नहीं उसके पर!
तुम नहीं जान पाओगे।

दीमकों का भोजन बनती मेरी कॉलोनी की साफ़ सड़क के किनारे पड़ी उस दरख्त का महत्व तुम नहीं समझ पाओगे।
वो बहुत कीमती है।
भेड़ चराने वाली उन लड़कियों के लिए।
वो दरख्त उनके घर का चूल्हा जलाएगी। कितने अपने होंगे ये चरवाहे उस दरख्त के लिए। खुशी से जलेगी ये दरख्त उनके लिए।
बस ये कॉलोनी का चौकीदार उन लड़कियों को कॉलोनी में घुसने तो दे!

(Feb 11, 2009)

Wednesday, February 4, 2009

एक संत देखा आज (Oct 24, 2008)

संत कबीर की एक बात सुनी थी :
" कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये
ऎसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये "

कितना सूक्ष्म विचार है ये, कितना गहरा।

आज कॉलेज के cultural festival में शंकर - एहसान - लॉय आए थे गाने बजाने। खूब समा बांधा उन्होंने। भारत भर के कॉलेजों से आए हजारों बच्चे झूम रहे थे, नाच रहे थे। सब कितने खुश थे। एक घंटे के शो के बाद Rock-on fame फरहान अख्तर की surprise entry हुई। चारों ओर एक जादू सा फैलाने गया। फरहान अख्तर कुछ कहता, लोग खो जाते, एक मस्ती में, कुछ शायद समाधि में। लोग जितना झूम रहे थे, उस से ज्यादा झूमने लगे। जितने खुश थे, उस से ज्यादा खुश हो गए। हर चेहरा एक मुस्कान लिए, हर शरीर नाचने को बेताब।

पता नहीं फरहान अख्तर
ने कबीर की इस बात को सुना था या नहीं, लेकिन उसने इस बात को चरितार्थ कर के दिखाया आज। या शायद उस से ज्यादा कुछ किया। कुछ ऐसा किया की जीते जी ही सबको हंसाया, खुश किया।

संत फरहान??


(Oct 24, 2008)

Friday, January 23, 2009

Thus Spake Osho (July 16,2008)

ओशो: “ शिक्षा और विद्रोह ” किताब से -

" क्या यह नहीं हो सकता कि गणित कोई इसलिए सीखे और सिखाया जाए कि गणित सीखना उसका आनन्द है? क्या यह नहीं हो सकता कि कोई काव्य इसलिए सीखे कि काव्य उसका आनन्द है? और रोज़ अपने को अतिक्रमण करने के लिए आगे बढ़ता चला जाए कि कल मैं जहाँ था, और कल के सूरज ने जहाँ मुझे छोडा था, आज का उगता सूरज मुझे वहाँ न पाए? मैं आगे निकल जाऊँ। अपने से ही रोज़-रोज़ स्वयं को अतिक्रमण और ट्रन्सेन्ड करता जाऊँ, क्या यह नहीं हो सकता है? क्या इस भाँति की गैर-प्रतिस्पर्धी शिक्षा नहीं हो सकती?......... "

क्या हो सकती है???

(July 16, 2008)

Vishvaas (Dec23, 2008)

विश्वास

मैं... एक आर्य समाजी! अंधविश्वास, मूर्तिपूजा और पाखण्ड चिड़ने वाला।
पर किस 'विश्वास' को अंधविश्वास कहते हैं, कभी कभी दुविधा में पड़ जाता हूँ।
एक उदहरण -
एक डर, असफलता का, हाल ही में मुझ पर हावी हो गया था। जानता था कर्मफल का नियम। मेरे कर्म ही सफलता या असफलता का फल बनकर आएँगे। फिर भी उस डर से जीत नहीं पा रहा था। असफलता निश्चित लग रही थी।
मेरा किसी लोकल देवी-देवता में विश्वास नहीं, मेरे माता-पिता का बहुत है। वे आर्यसमाजी नहीं हैं ना!
पर मेरा माता-पिता से बहुत प्यार है।
उन्होंने कुछ गेहूँ के दाने दिए मुझे जो वे किसी महामाया-माता से मुझे असफलता से बचाने वाले रक्षा कवच के रूपमें लाए थे।

मैंने सहर्ष लिए। उनके लिए।
असफलता का डर इन गेहूँ के दानों के प्रति आस्थावान तो नहीं बना रहा था, पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं देने दे रहा था।
महामाया-माता के कहे अनुसार एक एक गेहूँ का दाना खाकर दिन बिताए।
परिणाम वाला दिन आया। असफल होने से बच गया। डर खत्म हुआ।
किसे धन्यवाद दूँ? कृतघ्न नहीं हूँ। मेरे लिए कृतज्ञता की भावना अपरिहार्य है।
किसे धन्यवाद दूँ? आर्य समाज वाले मेरे निराकार इश्वर को? या महामाया माता के उन गेहूँ के दानों को? या किसीको नहीं, कर्म फल ही तो है।

लेकिन इस बात को यहीं छोड़ देता हूँ। ज़्यादा विचार या पड़ताल नहीं करूँगा।
इस बार भी।
तर्कों पर चलने वाला उन ‘गेहूँ के दानों’ को कहीं और भी आज़माना चाहेगा।
पर नहीं करूँगा ऐसा।
इस बार भी।
बचपन की तरह।
बचपन में रात के समय पास वाले मोहल्ले के शमशान के पास से कभी अकेले गुज़रने की हिम्मत नहीं होती थी।पर अपने पिता का हाथ पकड़ कर उस गली से निडर होकर गुज़रा।
क्या सोचता था कि शमशान के भूत, जिनसे मैं डरता था, जब आएँगे तो मेरे पिता उन्हें मार कर भगा देंगें?

अब क्या बड़प्पन की मेरी अक्ल, जो भूतों के अस्तित्व को मानने से इनकार करती है, पिता की उस 'शक्ति' को गौण कर दे, जिसने मुझे अभय दिया था?

वो असफलता का डर, भूत था।
वो गेहूँ, पिता का साथ।
ये बड़प्पन, कर्मफल की मान्यता है।
ये गेहूँ के महत्त्व पर विचार करने से इनकार, उस बचपने में लौटने की मेरी इच्छा है।
या शायद, मेरा बचपना ही।

(Dec23, 2008)

Rickshaw Puller (Oct 3, 2008)

Presley, Rock star या Emo
कितना cool होता है ना
उनकी तरह बनना, करना या दिखना….
स्टेशन के पास 3-feet के rickshaw में सोते हुए
उस ग़रीब को देख कर मन किया
कि उसकी नकल करने जैसा uncool काम किया जाए
तो उस रात अपने पलंग पर
3-feet का दायरा बना
सिकुड़ कर सोने की कोशिश की
पर नहीं कर पाया
क्योंकि
ना मैं थका हुआ था
ना मेरा पेट खाली था…..