Friday, January 7, 2011

रिश्ते.... (Jan 6, 2011)

रिश्ते...
बहुत कीमती होते हैं, खो देने के लिए
दुखी होता हूँ
इन्हें बिगड़ते देख

अच्छा नहीं लगता
गलतफहमियां मन में पाल
दुसरे को गलत
खुद को सच्चा मान
अपनी 'बेचारगी' के एहसास का वो
मीठा मगर हानिकारक रस लेना

अच्चा नहीं लगता
दुसरे से ही झुकने की उम्मीद कर
अपनी अज्ञानता और अहंकार का वो
खट्टा मगर हानिकारक रस लेना

ख़ुशी और दुःख के फलों से लदे हैं रिश्ते
झपट कर ख़ुशी के फल हम क्यों नहीं तोड़ते हैं
हिस्से में दुःख आने पर हम क्यों रिश्तों से दूर दौड़ जाते हैं

रिश्तों पर मेहनत क्यों नहीं करते हम
नौकरी, डिग्री, चेहरे के खूबसूरती
यहाँ तक की जूते और गाडी पर जमी धुल
सब के लिए वक़्त है हमारे पास
फिर रिश्तों से क्यों भागते हैं हम.....

2 comments:

  1. यही तो बात है...

    जीवन की असल कमाई क्या है,यह यदि जान ले आदमी,तो जहाँ पा लेगा...

    (शब्द 'अच्छा' अच्चा टाईप हो गया है...ठीक कर लेना...)

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  2. बात तो सही है ..। लोग रिश्तों पर मेहनत कम ही करते हैं। पर मुझे लगता है की रिश्ते मेहनत करवाने के लिए नहीं बने हैं। रिश्तों को मेहनत की जरूरत नहीं बस थोड़ा संभालने की जरूरत होती है। जब रिश्ते मेहनत से बनते हैं तो अक्सर वो एक समझौता बन कर रह जाते हैं। हाँ मैं जानता हूँ की रिश्तों को समय देना बहुत ही जरूरी होता है, तभी रिश्ते परिपक्व और सुढ़्रड बन पाते हैं।

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